Search Results
18 items found for ""
- निर्णय का अंतिम दिन - MUST READ
जैसा कि गुरुवर्य वैद्य अभिजीत सराफ जी ने कहा, TANTRAYUKTI यह विषय पिछले सौ साल से आयुर्वेद में पढ़ाना जैसे बंद ही हो गया है। आचार्य चरक, सुश्रुत जी के काल में तंत्रयुक्ति यह सभी विद्यार्थियों को पहले से ही ज्ञात था, इसीलिए तंत्रयुक्तियों का उल्लेख संहिता के अंतिम अध्याय में होता है? क्या इनका ज्ञान हमे है? जितना है, उतना काफी है? शतकों में एक बार होने वाले ऐसे संभाषा में सहभाग ले और एक सुवर्ण इतिहास का साक्षी बनिए। कदाचित अपने जीवनकाल में पुनः तंत्रयुक्ति सिखने का अवसर न मिले! आज अंतिम अवसर है, आज ही आप को निर्णय लेना है, क्या आप १३+ गुरुजनों से अमृत प्राशन कर स्वयं में अमृतत्व लाना चाहते है? तंत्रयुक्ति समझ कर संहिता के नए आयाम को अनुभव करना चाहते है? यही अंतिम घड़ी है, क्यों की पहला व्याख्यान कल शाम ४ बजे है। उस के बाद Registration बंद हो जाएंगे। इस विषय में आप की कोई आर्थिक या वैयक्तिक समस्या है, तो हमे तत्काल संपर्क करे, क्यों की प्रत्येक वैद्य को, हर एक विद्यार्थी को तंत्रयुक्ति का ज्ञान हो, यह हमारी लालसा है। अभी संपूर्ण जानकारी हेतु Click करे - https://payments.cashfree.com/forms/tantrayukti SEE DETAILS IN PDF BELOW!! संपर्क - 9130725375 SHARE WITH ALL BRILLIANT VAIDYAS YOU KNOW & HELP TO COMPLETE US OUR MISSION OF EVERY VAIDYA SHOULD BE ACHARYA! SEE DETAILS IN PDF BELOW!!
- हरियाणा के तीर्थस्थल
मै जैसे ही कुरुक्षेत्र और पिहोवा दर्शन करके आया हु, मेरे दिमाग मे उसी स्थलों का विचार चल रहा था । मेरे इतिहास के अध्ययन मे जितने स्थल मुझे मिले थे उनके साथ गत ७ दिन और अध्ययन करके कुरुक्षेत्र, पिहोवा, कैथल, करनाल, जिंद प्रदेश के दिव्य प्राचीनतम स्थलो की सूची मैने बनायी है... आप सभी हरियाणा वासी वैद्य गण इसे देखो, हो सके तो कृपया यहा दर्शन करके आओ बहोत तीव्र विनती है यह...अपने इतिहास को हमे ही उजागर करना होगा वैद्य अभिजित सराफ *कुरुक्षेत्र के आयुर्वेद से संबंधी प्राचीन स्थल* सरस्वती का प्रवाह - आदिकेदार से समतल भूमी मे प्रवेश करके आज के मुस्ताफाबाद, थानेसर, नरकातारी, ज्योतिसर, पेहवा, नौंच, सफौंदा, जिंद ऐसी बहती थी । ब्रह्मा तपस्थली - ब्रह्मा सरोवर, कुरुक्षेत्र आसन - अश्विनीकुमार मंदिर, च्यवनप्राश निर्माण स्थल पराशर ऋषि यज्ञ स्थल - बहलोलपूर, करनाल गौतम ऋषि तपस्थली - गोंदर, करनाल सोम तीर्थ - चंद्र तपोभूमी - राजयक्ष्मा कथा - पांडव पिंडारा, जिंद जमदग्नि तपस्थली - जामनी, जिंद कपिल मुनी जन्मस्थल, मंदिर और तपोभूमी - बिंदुसार तीर्थ कलायत कपिल मुनी तपोभूमी - कौल, कुरुक्षेत्र यक्षी देवी मंदिर - रामराय, जिंद - यहा शनिवार को अगर नमक चढाया तो त्वचारोग नष्ट हो जाते है मार्कण्डेय ऋषि जन्मस्थल - मुकुटेश्वर, मटोर, कलायत मृकंड ऋषि तपोभूमी - मुकुटेश्वर, मटोर, कलायत श्री महामृत्युंजयेश्वर महादेव - मटोर, कलायत कश्यप और अदिती तपोभूमी - अदिती कुंड - अमीन (अभिमन्युपूर), थानेसर थानेसर सरोवर (स्थाण्वेश्वर) - यहा स्नान करके शिवजी का पूजन करेगा तो कुष्ठ नष्ट होता है वसिष्ठ आश्रम - सरस्वती तट, वसिष्ठ गुफा, वसिष्ठ प्राची तीर्थ, पिहोवा इंद्र तपस्थली - इंद्र तीर्थ, कैथल गांव ब्रह्मा तपस्थली - शिलखेडी, कैथल दृढबल महर्षि निवास - कैथल *********** *अन्य प्राचीनतम ऋषि तपोभूमी और आश्रम* यहा सरस्वती के तट पर अनेको महर्षिओं ने अपना आश्रम बनाया था और वहा अध्ययन, अध्यापन, तप करते थे ब्रह्माद्वारा सृष्टि निर्मिती प्रारंभ - ब्रह्मायोनि तीर्थ, पिहोवा कार्तिकेय जन्म और तपोभूमी - सरक तीर्थ, शेरगढ, कैथल नारद आश्रम - दूधखेडी, कैथल (यहा शिव और विष्णु दोनो की एकत्रित तपोभूमी है - महाभारत वन पर्व) जयन्ती देवी मंदिर - भूतेश्वर, जिंद सर्पयज्ञ स्थल - सफीदों, सर्पकुंड कश्यप आश्रम - अमीन, थानेसर सप्तऋषि कुण्ड - शिलखेडी, कैथल सूर्यकुंड - अमीन, थानेसर वामन अवतार जन्म - अदिती कुंड, अमीन, थानेसर केदार तीर्थ - कैथल ग्राम लोमश ऋषि तपोभूमि - लोकोद्धार तीर्थ - लोधार लौह ऋषि तपोभूमि - लोधार परशुराम तपोभूमी - रामराय, जिंद पृथु तपोभूमी - पृथुदक, पिहोवा चमन ऋषि तपोभूमी - खरावड, रोहतक वेदवती तपोभूमी - बलवंती, पिहोवा - कैथल रोड रावण स्थापित कालेश्वर महादेव - थानेसर शृंगी ऋषि आश्रम - सांघन ययाति तीर्थ - यहा सरस्वती प्रवाह था - कलवा, जिंद प्राचीन ययाति तीर्थ - रायसन वराह अवतार तीर्थ - कलाँ ग्राम, जिंद ध्रुव तपोभूमी - धेर्डु, संगरोली, कुरुक्षेत्र नाभि कमल तीर्थ - थानेसर समीप - यही पे विष्णुजी के नाभी से उत्पन्न कमल से ब्रह्माजी निर्माण हुऐ थे कुबेर तीर्थ - थानेसर की भद्रकाली मंदिर से समीप सरस्वती के तट पर है । यहा पर कुबेर ने अनेको यज्ञ किये थे । दधिची ऋषि तपोभूमी - सरस्वती तट, करनाल विमल ऋषि तपोभूमी - सग्गा, करनाल काम्यक वन और तीर्थ - कमोधा ग्राम, ज्योतिसर विश्वामित्र ऋषि को ब्रह्मत्व प्राप्त हुआ - पिहोवा, सरस्वती तट मनु तपस्थली - पिहोवा, सरस्वती तट उत्तंक ऋषि तपस्थली - पिहोवा, सरस्वती तट विश्वामित्र तपस्थली - ब्रह्मयोनि तीर्थ, पिहोवा नन्दी तपोभूमी - टिंडी तीर्थ, कैथल फल्गु ऋषि तपोभूमी - फरल, कुरुक्षेत्र- कैथल रोड ****** *दृढबल महर्षि ने अपने परिचय मे दिया है की पंचनदप्रदेश मे कपिस्थल नगर मे उनका निवास था* *कपिस्थल - कैथल* *पंचनद प्रदेश - सरस्वती, दृषद्वती, आपगा, कौशिकी, वैतरणी* प्राचीन वैतरणी नदी व त्रिविष्टप तीर्थ - तेओंथा, कैथल-करनाल रोड प्राचीन मार्कण्डेया (हिरण्यवती) नदी - काला अम्ब - जफ्फरपूर - मुल्लाना - शेरगढ - शाहबाद- कलसाना प्राचीन आपगा नदी - कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के दक्षिण मे - कर्ण का टीला - मानस ग्राम - कैथल प्राचीन मधुस्रवा नदी - पिहोवा के पास सरस्वती मे संगम प्राचीन कौशिकी नदी - पिहोवा प्राचीन दृषद्वती नदी - कुरुक्षेत्र की दक्षिण सीमा, दृषद्वती, आपगा और सरस्वती का त्रिवेणी संगम स्थान था । वैद्य अभिजित सराफ
- Basic Principles for Successful Ayurvedic Practice -- Part 1
Ayurveda is well-known for its precise basic concepts that follows Nature. Each and every thing in Nature is made up of Panchamahabhuta. Aakash, Vaayu, Teja, Aap and Prithavi are the Panchamahabhuta. Many theories have been put forward about evolution. " How life started on earth??" The question asked by many. Big Bang Theory and all. Ayurveda answers it in terms of "Panchamahabhutatmak srushti ". In our books of science/biology, we studied Stanley Miller's experiment. He developed a special apparatus, resembaling with primitive atmosphere on earth. It was a sealed glass apparatus with water, some primitive gases like ammonia, methane; 2 electrodes, heat source etc. It was a classic experiment on the origin of life which was conducted in 1952 and published in 1953 by Stanley Miller and Harold Urey at the University of Chicago. They were able to show that there were over 20 different amino acids produced in Miller's original experiment. We in Ayurveda believe everything starts with and ends at Panchamahabhutas. If we look at the Miller's experiment he actually used Panchamahabhutas. Sealed glass apparatus = Akash Mahabhuta, Gases, steam and their movement in apparatus = Vaayu Mahabhuta , Electrodes and heat = Tej Mahabhuta , Water = Aap Mahabhuta, Formed Amino acids = Prithavi Mahabhuta .. See the image below " Srushti utpatti" seems irrelevant when it comes to diagnosis and treatment of disease. But Aakashat vaayu ---- Vaayoragne ---- Aagnerapa ---- Adabhya Prithavi. This exact sequence is followed in each disorder that is vyaadhi utpatti. Let's see how?? Aakash = Kha vaigunya. Any deviation from normalcy is Vyaadhikar. Kha vaigunya in Dhatu or srotasa vitiates Vaat dosh. Vaayu is most important dosha of all three. Remember "Pitta pangu, kapha pangu ... " sutra ???? Yes thats why Vaayu is the hidden culprit in almost all samprapti. Due to Kha vaigunya, Vaat gets a room. Vaat gets vitiated, it gets pratilomit, it changes its direction and it hampers the Aagni sanstha and its functions. As we know air is important for combustion/ burning but excess air has a power that can put out the fire also. Agnimandya causes all diseases ( रोगाः सर्वेsपि मंदाग्नौ....) . Aap and Prithavi Mahabhuta (pradhan mahabhuta in dushya i.e. sapta dhatu) gets affected finally and symptoms occur. Similarly we can see tha aushadhi also from Panchabhautik aspect. 1) Manoduarbalya, aatisar, sransa, bhanga, jaal Mahabhuta atipravrutti ( aatisar, prameha, pradar, raktapitta, dushta vrana, sravi vrana etc. ) kshayaj samprapti; in such conditions we have to use Parthiv dravya like gairik, different bhasmas, pancha kshiri vruksha, laksha, guggulu, padmak, gandhavan dravya like jatamansi, vacha etc. Following are the properties and functions of Parthiv Dravya : गुरू, खर , कठीण, स्थिर, मन्द, विशद, सान्द्र, स्थुल --- उपचय, संघात, गौरव, स्थैर्य, बल, अधोगमन 2) Tikshana gunajanya vyaadhi, amlapitta, daha, kamala, rasa kshayaj vyadhi, manas vyadhi, bhayaj vyadi ( जलं आश्वासकराणां) . These are the conditions where Aapya dravya has to be used. Like siddha jala, hima, fant, peya, manda, kashay, ushir, kamal, mustak, gokshur, dhanyak, chandan etc. Following are the properties and functions of Aapya Dravya : स्निग्ध, शीत, मन्द, मृदु, सान्द्र, पिच्छिल, स्तिमित, सर --- क्लेदन, स्नेहन, बंधन, विष्यंदन, मार्दव, प्रल्हादन 3) Pitta kshayajanya vyadhi, agnimandya, krimi, shaitya, stambh, swapa, shool, aam pradhan awastha ; in such conditions Taijas Dravya has to be used. Like shunthi, maricha, pimpalli, vacha, chitrak, bhallatak etc. Following are the properties and functions of Taijas Dravya : उष्ण, तीक्ष्ण, सूक्ष्म, लघु, विशद, रूक्ष, खर ---- दहन, पचन ; प्रभा, वर्ण प्रकाशन, दारू, तापन, उर्ध्व गमन 4) Medorog, santarpanothha vyadhi, kleda bahul awastha, bahu dosha awastha, gaurav, kaphaj agni mandya, vruddhi ( as an any unwanted growth) in such conditions Vaayaviy Dravya has to be used. Like kutaj, triphala, kanchanar, punarnava, tulasi, vaasa etc. Following are the properties and functions of Vaayaviya Dravya : लघु, शीत, रूक्ष, खर, विशद, सूक्ष्म, व्यवायी, विकासी ---- विरूक्षण, विचारण, ग्लपन, वैशद्यकर, लाघवकर, कर्शण, आशुकारी 5) Srotasa avarodha, all avarodhajanya samprapti, vruddhi ( as an any unwanted growth) kled, med, aam vruddhi etc. In such conditions Aakashiya Dravya should be used. Like kuataki, kumari, haritaki, triphala etc. Following are the properties and functions of Aakashiya Dravya : मृदू, लघु, श्लक्ष्ण, सूक्ष्म, व्यवायी, विशद, विविक्त ---- मार्दव, सौषिर्य, लाघव, विवरण Ayurved principles has many gems 💎 Panchamahabhutik Siddhanta is one of the important siddhanta that can be applied for diagnosing as well as treating the disease. Which are your favorite principles of Ayurveda ?? Do tell me in the comments below, also would like your suggestions on " Which principle should be the next one??" I have one in my mind.. "Lok purush samya siddhanta" Thanks team AyuPedia for such a wonderful platform.👍 you are doing a great work. Jay Ayurved Vd. Prajakta Patel (M.D. Dravya) praj8285@gmail.com
- Become an AyuPedia Admin
A Volunteer Program for Returning the High Status to Ayurveda Vaidyas Charges - FREE OF COST You can Also Earn by Providing Paid Services! By filling the Google Form Below, You'll Become a Reputed Admin of AyuPedia Family! You have to Just Contribute by Following Ways - https://forms.gle/E6WKFzX7m8CqeeXC8 You can Become - 1. Blogger - We're Providing Personal Blog Account to you, Related to Ayurveda! You can Write Articles Anytime, Anywhere. (No Topic Restriction) 2. Entrepreneur - You can Sell your Book, Video Lectures, Notes, PPT's etc. 3. Author - Help Us to Write a Book ALSO We are Exited to help you for Writing Your Own Book! We'll Manage All Publishing And Distribution Copyrights! We've Already Published a Marathi Ayurvedic Book! 4. Co-Organizer - Help Us to Organize the Following Events - A. Lecture Series (Both Free & Paid) B. Quiz Competition C. संभाषा परिषद - Debate Competition D. Any other occasional Events 5. Lecturer - If you are Good as Lecturer OR Want to give Lectures, Please Contact Us! 6. Guide - A Volunteer Programme for Returning the High Status to Ayurveda Vaidyas 7. Network Creator - Help Us to Create Network of Vaidyas & Students, Practitioners to Bring them Together OR Gaining Knowledge from them to Explore it! 8. Provider - Provide Us the Ayurvedic Books, Notes etc. 9. Donation - You can Also Donate Us for this! 10. Content Creator - You can Create Instagram Post (with your Credits) and also Charts & Diagrams Related to Ayurveda! 11. Other - You can Take Part in it By Any way Possible! Advantages - Your Capacity of Study will Increase - More the Students Shall start Ayurvedic Clinic - The Quantity & Quality of Matter Available on Internet related to Ayurveda will Increase - Increase in Understanding Level of Ayurveda PERKS - Certificate for Fulfilling Criteria - Earning through Paid Services - Free Access to Related Documentation - Concession in Fee of Future Events! Who can Participate? - UG Students - PG Students - Practitioners - Vaidya having Government Job - Entrepreneur Vaidya - Vaidya Working in Private Sector YOU CAN START ANYTIME YOU WANT...! Just Register Now! Any query? Contact Us team.ayupedia@gmail.com
- रसशास्त्र में उपयुक्त संज्ञाओंकी संख्या
महारस - रस शास्त्र में महारस की संख्या आठ मानी गयी है | अभ्रक - Mica वैक्रान्त - Tourmaline माक्षिक - Pyrite विमल - Iron Pyrite शिलाजीत - Black Bitumen सस्यक - Copper Sulphate चपल - Bismuth रसक - Calamine or Zinc उपरस - उपरस की संख्या भी आठ मानी गयी है जोकि इस प्रकार है - गन्धक - Sulphur गैरिक - Ochre कासीस - Green Vitriol फिटकरी ( कांक्षी ) - Potash Alum हरताल - Orpiment मन:शिला - Realgar अंजन - Collyrium कंकुष्ठ - Ruhbarb साधारण रस - यह भी संख्या में आठ बताये गए है कम्पिल्लक - Kamila गौरीपाषाण - Arsenic नवसादर - Ammonium Salt कपर्द ( कौड़ी ) - Marine Shell अग्निजार ( अम्बर ) - Ambergris गिरिसिंदूर - Red Oxide of Mercury हिंगुल - Cinnabar मृददारश्रृंग - Litharge धातु वर्ग - धातु की संख्या सात बताई गयी है सुवर्ण - Gold रजत - Silver ताम्र - Copper लौह - Iron नाग - Lead वंग - Tin यशद - Zinc रत्न वर्ग - रतन की संख्या नो बताई गयी है - माणिक्य - Ruby मुक्ता ( मोती ) - Pearl प्रवाल ( मूंगा ) - Coral ताक्षर्य ( पन्ना ) - Emerald पुखराज - Topaz भिदुर ( हीरा ) - Diamond नीलम - Sapphire गोमेद - Zircon वैदूर्य - Cat's eye
- Motive of Website (उद्देश्य)
Modern विषयावर खूप संशोधन झालेले आहे. आंतरजालावर कुठल्याही Modern topic वर चुटकीसरशी माहिती सापडते. त्यामुळे खरंतर अभ्यासासाठी काही क्षणात ज्ञान उपलब्ध होते; परंतु आयुर्वेदीय ज्ञान हे अजूनही ग्रंथातच मर्यादित आहे, अर्थात ते अतिशय सटीक आणि सविस्तर उपलब्ध आहे, परंतु कोणताही विषय त्यात शोधायचा झाल्यास अनेक कष्ट करावे लागतात. सहजरित्या माहिती मिळत नाही. त्यासाठीच हा Digitizationचा घाट घातला आहे. संपूर्ण आयुर्वेदीय ज्ञान आंतरजालावर उपलब्ध व्हावे, ते शोधण्यास सोपे पडावे, तसेच त्याचा सर्व वैद्यांना तसेच आयुर्वेद शिकणाऱ्या विद्यार्थ्यांना याचा लाभ घेता यावा, यासाठी हा एक छोटासा प्रयत्न! अर्थात, अभियानाचा हा एक आरंभ असून सगळी माहिती एकदमच या Platform वर उपलब्ध होणार नाही आणि आपल्या सहयोगाशिवाय हे अजिबातच शक्य होणार नाही. कारण म्हणतात ना, 'गाव करी ते राव न करी' जे कार्य सांघिकरित्या पार पडू शकते ते कितीही कष्ट केले तरी एकटा व्यक्ती करू शकत नाही. याच करिता सर्वांना विनंती आहे की आपण साऱ्यांनी या कार्यात आपला सहयोग द्यावा. आपण खालील प्रकारे आपला सहयोग देऊ शकता, - आपण आम्हाला आपल्याकडील साहित्य देऊ शकता, जसे - विविध ग्रंथ, आपल्याकडील Notes तसेच त्यांची छायाचित्रे (त्यासोबत आपले नाव आणि छायाचित्र द्यायला विसरू नका.) आपण विविध विषयावर आपले मत मांडून चर्चा करू शकता आणि त्यावर Online Debate Complitation मध्ये सहभागी होऊन एक effective output काढू शकता. आपल्याकडील माहिती आम्हाला लिहून किंवा Record करून पाठवू शकता. तसेच आपण द्रव्य स्वरूपातही साहाय्य करू शकता. तेव्हा लगेच आमच्याशी संपर्क करून आपण साहाय्य करू शकता. त्यासाठी खालील बटनावर दाबून अधिक माहिती मिळवा -
- श्रेष्ठ विषघ्न - शिरीष
Why Shirish is considered as best Vishaghna? Here some reasons are... शिरीषो विषघ्नानां Vishaghnata - Anti poisonous activity is a broad term used in Ayurveda to illustrate wide range of Pharmacological actions like Anti bacterial Antifungal Antipoisonous Antiviral Antiallegic activities Etc शिरीष (Albizia lebbeck) has Tritepenoid saponins ..! Studies shows presence of such important chemical compounds like - Triperpinoid saponins such as Albizia saponina A, B and C along with rich Tanins showing Anti Microbial activities, Antiallergic, Antitumor activity! शिरीष पर्याय - शुकपुष्पः, शुकतरु, मृदुपुष्पः, शुकप्रियः, मधुपुष्प, वृत्तपुष्पः English - Albizia lebbeck Hindi, Marathi - SHIRISHA Malayalam - NENMENIVAKA शिरीषो मधुरोऽनुष्णस्तिक्तश्च तुवरो लघुः |दोषशोथविसर्पघ्नः कासव्रणविषापहःll शिरीषः कटुकः शीतो विषवातहरः परः |पामासृक्कुष्ठकण्डूतित्वग्दोषस्य विनाशनः || Source - Unknown
- Satmya - Oksatmya by Soumya Prakash Mohanty
Many many years ago, Human civilization developed foe sustain & maintain a good health. There is actually necessary of health science. Ayurveda is a very unique and ancient system of medicine which deals with both - cause of disease / how to prevent the disease and eradication of a disease. This concept was already explained in Agnivesh Tantra , most commonly & Popularly known as 'Charak Samhita' . प्रयोजनं चास्य स्वस्थस्य स्वास्थ्यरक्षणं, आतुरस्य विकारप्रशमनं च| - च. सू. १ This is not only tell the Prevention but also the eradication, which is better for human settlement. But, Practically, it is possible when we focus & obey some important feature explained by Ayurved Acharyas like Agni, Prakruti, Vikruti, Trayopstambha, Satmya, Vyayam, Abhyang and more specific to Ahara-vihara, in terms of Ritucharya. "Satmya" is an important feature of Ayurved. It is that, which being used constantly has wholesome effects in body. The synonym of satmya is Upashaya & opposite is Asatmya or Anupashaya. It is a regimen by application through day to day life, it become necessary as well as suitable to body. There is no exact Classification of Satmya. It is basically of three types -\ Superior Satmya Inferior Satmya Mediocre Satmya As we know, there are 6 Rasa, which are given in Ayurvedic Samhita i.e. Madhura, Amla, Lavan, Katu, Tikt and Kashaya. Superior Satmya defines using of all rasas. Use of any one like Lavan/Katu or any other Rasa is of Inferior Satmya. Mediocre as the name itself indicates average, it is in between Superior & Inferior. Oksatmya is nothing but a type of satmya. It is that which i.e. suitable to the person because of regular use, either it is diet or regimen. It has been used in the sense of Abhyas- Satmya. It may be sometime wholesome entity while sometime unwholesome also. Both harmful & useful things constitute Oksatmya. For example, taking milk in regular, eating green vegetables, rice, ghee everyday, not harmful for health provided Ritucharya guidelines,. Another case, If someone drinks drugs i.e. not immediately harmful. By considering guna, diet, regiment of Dosha, we have to more focus on Desha-Satmya, Dosha-Satmya, Vaya-Satmya, Prakruti-Satmya as well as Amaya-Satmya. Dosha-satmya is very important in terms of clinical approach. It deals with medicine/dietary plan, which keep on or bring Doshas in the state of normality. Satmya indicates Opposite qualities to Dosha, but in clinical approach the stage of Doshas should be asses sincerely & accordingly management be decided. Including this, Dosha-satmya considers the attributes of Dosha involved in manifestation of disease. If LAGHU property of vata-dosha is increased then GURU, Therapy will be the appropriate choice. Prakriti-satmya deals with maintenance of good health. Acharya sarangdhara explained very briefly about vata, pitta and khapa prakriti in his purvakhand. Among all prakriti; Samadoshi-prakriti is best and advised to people for it. Vaya-satmya It means that which is wholesome according to different stages of age. Same type of substance are not applied in all age groups. Basically treatment like Vaman, Vinrechana, Brihan, Langhan etc. should be advised as pen age and time considerable. Because the substance suitable in adult or old age may not be suitable many time in childhood and vice-versa. If we look dominant of dosha then; kapha dosha is predominant in childhood, pitta dosha in adult age & vata dosha in old age. All physician, vaidya & Doctor should give attention while advising any medicine to patient. As the scope & application of satmya is very fast, all have to focus the Vaya, Kala, Desha, Dosha and more specific to Prakryti and Oksatmya. If any person belong to Ayurveda would not understand and Applied aspect of Satmya-Oksatmaya concept, then they will never get Success in their duty! The Post by Soumya Prakash Mohanty Copyright @AyuPedia
- Satmya-Oksatmya by Dr. Japa Jayant phadke
आयुर्वेदातील सात्म्य - असात्म्याचा अभ्यासच मुळात रोगाचे निदान आणि रुग्णचिकित्सार्थ उपयुक्त आहे. रुग्णाचा देश, वय, काळ , व्याधी आदि नुसार त्याला कोणता आहार-विहार योग्य व कोणता अयोग्य हे ठरते. म्हणून सात्म्यासात्म्याचा विचार अतिशय महत्त्वपूर्ण आहे. 'ओकसात्म्य' म्हणजे साम्यच्या प्रकारांपैकी एक वैशिष्ट्यपूर्ण प्रकार...!! आपण आधी सात्म्य म्हणजे काय याबाबत विचारविनिमय करु. सात्म्यं नाम तद् यदात्मन्युपशेते; सात्म्यार्थो ह्युपशयार्थः| - च. वि. १/२० देशानामामयानां य विपरीतगुणं गुणैः। सात्म्यमिच्छन्ति सात्म्यज्ञानश्चेष्टितं चाद्यमेव च ॥ -च.सू. ६/५० आपल्या शरीरासाठी जे सुखकारक असते ते म्हणजे ‘सात्म्य’ देश व रोग यांच्या विपरीत गुणांच्या व विपरीत कार्य करणारा आहार आणि विहार हा त्या देश व रोगासाठी सात्म्य समजावा. यामुळेच सात्म्य अर्थात उपशय म्हटले आहे. मधुर रस, दुग्ध, घृत हे आजन्म सात्म्य सांगितलेले आहेत. तत् त्रिविधं प्रवरावरमध्यविभागेन ; सप्तविधं तु रसैकैकत्वेन सर्वरसोपयोगाच्च| तत सर्वरसं प्रवरम् , अवरमेकरसं, मध्यं तु प्रवरावरमध्यस्थम्। तत्रावरमध्याभ्यां सात्म्याभ्यां क्रमेणैव प्रवरमुपपादयेत् साम्यम्| सर्वरसमपि सात्म्यमुपपन्नः प्रकृत्याद्युपयोक्रष्टमानि सर्वाण्याहारविधिविशेषायतनान्यभिसमीक्ष्य हितमेवानुरुध्येत || - च. वि. १/२० सात्म्याचे प्रकार केलेले आहेत. त्रिविध - प्रवर (श्रेष्ठ) मध्य अवर (हीन) सप्तविध : एकेका रसाचे सात्म्य (अवर) - मधुर, अम्ल, लवण, तिक्त, कटु, कषाय सर्वरस सात्म्य (प्रवर) यांच्या मधील मध्य सात्म्य चतुर्विध सात्म्य - ऋतुसात्म्य ओकसात्म्य देशसात्म्य व्याधीसात्म्य उत्तरोत्तर बलवान 1. ऋतुसात्म्य - तस्याशिताद्याहाराद्बलं वर्णश्च पद्यते । यस्यर्तुसात्म्यं विदितं चेष्टाहार व्यपाश्रयम् | - च. सु. ६/३ कोणत्या ऋतुत कोणता आहार-विहार अनुकूल वा प्रतिकूल' असतो हे जाणणे म्हणजे ऋतुसात्म्य होय 2. देशसात्म्य - देश: पुन: स्थानं स द्रव्यागामुत्पत्तिप्रचारौ देशसात्म्यं चाचष्टे | - च. वि. १/२२ (५) देशसात्म्येन च देशविपरीतगुणं सात्म्यं गृह्यते यथा आनूपे उष्णरुक्षादि, धन्वनिच शीतस्निग्यादि| (टीका) रोग्याची शारीरिक स्थिती योग्य प्रकार जाणण्यासाठी व औषधींचे गुणधर्म समजून घेण्यासाठी देश अर्थात भूमीचे ज्ञान महत्त्वपूर्ण आहे. जसे आनूप देशातील व्यक्तीला उष्ण, रुक्ष आहार सात्म्य आहे याउलट जांगल प्रदेशातील व्यक्तींना शीत, स्निग्ध असा आहार-विहार स्वस्थ ठेवणारा ठरतो. 3. व्याधीसात्म्य - व्याधी ज्या गुणांच्या आहे त्याच्या विपरीत गुणधर्माच्या आहार - विहार व्याधीसात्म्य समजावा. जसे निराम संधीगत वातात तीळ तेल, नारायणतेल, अनुवासन बस्ती, लाक्षा, गुग्गुक कल्प यांसारखी बृंहण चिकित्सा दिली जाते. 4. ओकसात्म्य - उपशेते यदौचित्यादोकः सात्म्यं तदुच्यते। - च. सू. ६/४९ जो केवळ निरंतर अभ्यासाने बाधाकर ठरत नाही म्हणजेच विकार उत्पन्न करत नाही त्यास ओकसात्म्य' समजावे. गङ्गाधरस्तु ओकसात्म्यम्' इति पठति, ओकादौचित्यात् सात्म्यमित्योकसात्म्यमित्युच्यते इति च व्याख्यानयति | 'ओक' या शब्दाचा अर्थ 'घर'...!!! अर्थात सवय होऊन जाणे. मनुष्यप्राणी ज्या प्रकारचा आहार नित्य, प्रतिदिन सेवन करतो ते पदार्थच त्याच्यासाठी सात्म्य म्हणजेन्य अनुकूल बनतात. यालाच ओकसात्म्य म्हणले आहे. उपयोक्ता पुनर्यस्तमाहारमुपयुङ्क्ते यदायत्तमोकसात्म्यम् इत्यष्टावाहारवेधिविशेषायतनानि व्याख्यातानि भवन्ति। - च. वि. १/२२ यदायत्तमोकसात्म्यमिति भोक्तृपुरुषापेक्षं ह्यभ्याससात्म्यं भवति; कस्यचिद्धि किश्चिदेवाभ्यासात पथ्यमपथ्यं वा सात्म्यं भवति ||२|| - च. वि. १ (चक्रदत्त टीका) जो आहाराचा उपयोग करतो त्यास उपयोक्ता म्हटलेले आहे. ओकसात्म्य हे त्याच्या अधीन असते. रुग्ण चिकित्सार्थ आपल्याकडे आल्यानंतर कोणत्या गोष्टी त्याला ओकसात्म्य झालेल्या आहेत याची माहिती असणे आवश्यक असते. सात्म्यतश्चेति सात्म्यं नाम तद्यतसातत्येनोप सेव्यमानमुपशेते | तत्र ये घृतक्षीरतैलमांसरससात्म्याः सर्वरससात्म्याश्चये बलवन्त: क्लेशसहाश्चिरजीविनश्य भवन्ति, रुक्षसात्म्याः पुनरेकसात्म्याश्चये ते प्रायेणाल्पबला अल्पक्लेशसहा अल्पायुषाऽल्पसाधनाश्व भवन्ति, रुक्षसात्म्याः पुनरेकरससात्म्याश्च, व्याप्तिश्रसात्म्यास्तु ये ते मध्यबलाः सात्म्यनिमित्ततो भवन्ति। - च. वि. ८/११८ सात्म्यतश्चेत्यत्र सात्म्यशब्देन ओकसात्म्यमुच्यते, प्रकृतिसात्म्यादीनां भेषजादिपरीक्षयैव परीक्षितत्वादिति ज्ञेयम्| - (चक्रदत्त टीका) जो पदार्थ सतत सेवन करूनही प्रकृतीशी अनुकूल राहतो त्यास सात्म्य (टीकेत-ओकसात्म्य) असे समजावे. घृत दूध,तेल, मांसरस यांचे ज्यांना सात्म्य आहे ते बलवान, कष्ट सहन करु शकणारे दीर्घायु असतात. ज्यांना रुक्ष पदार्थाये सात्म्य असते ते अल्पबल, कष्ट सहन करण्याची अल्पशक्ती असणारे, अल्पायु आणि अल्प साधन युक्त असतात. मिश्रित सात्म्य असणाऱ्या व्यक्ती मध्यम बलवान, मध्यम आयु आणि मध्यम साधन युक्त असतात विधिशोणितीय अध्यायातही शुध्द रक्त बनण्यासाठी देशसात्म्य, कालसात्म्य व ओकसात्मही आवश्यक असते, असा उल्लेख केलेला आहे. विधिना शोणितं जातं शुद्धं भवति देहिनाम्| देशकालौकसात्म्यानां विधिर्यः सम्प्रकाशितः || - च. सू. २४/३ च. नि. ६ शोषनिदानातही ओकसात्म्याचा उल्लेख आलेला आहे. प्रकृतिकरणादयो रसविमाने प्रपञ्चनीयाः अन्न चोपशय: शब्देन उपयोक्ता पुनर्यस्तमाहारमाहरति,यदायत्तमोकसात्म्यम्। - च. नि.६/१०-११ (च. वि.१) सुश्रुतांनीही ओकसात्म्याचा अर्थ वर्णन केलेला आहे. ओकसात्म्यमभ्याससात्म्यं ओकशब्दोऽयम् ‘उच्' समवाय इत्यनेन धातुना व्युत्पादित इति व्याख्याति| - सु.शा.१०/१९-२० (डह्वण) ओकसात्म्य व सात्म्य यातील मुख्य फरक म्हणजे ओकसात्म्यात विरुध्द आहार विहार देखील त्या व्यक्तीस सवयीने सात्म्य, हितकर होतो मात्र इतर सात्म्यात मात्र त्या त्या देश, काळ, ऋतू, व्याधीनुरुप गोष्टी शरीरास अनकूल होणार आहेत की नाही हे ठरते. दोन्हीतील साधर्म्य म्हणजेच या दोन्ही गोष्टी शरीरास बाधाकर ठरत नाहीत अर्थात दोषदुष्टी घडवून आणत नाहीत. उलट शरीरास हितकर ठरतात. परदेशात त्या वातावरणात मैद्याचे पदार्थ, मांसाहार,मद्य शीत वातावरणामुळे त्या प्रदेशातील लोकांना सात्म्य बनलेले असते तेच भारतात तांदूळ, ज्वारी, बाजरी हे पदार्थ सात्म्य बनलेले अहित. याउलट एखादी व्यक्ती दूध व केळी किंवा दूध, मीठ, भात अनेक वर्ष खात असेल, तिच्यावर त्याचा कोणताही परीणाम झाला नाही तर ते त्या व्यक्तीस 'ओकसात्म्य' झाले असे समजावे. माधवनिदानकारांनी सात्म्याची सुंदर व्याख्या केलेली आहे. औषधान्नविहाराणामुपयोगं सुखावहम्। विधादुपशयं व्याधेः सहिसात्म्यमिति स्मृतः|| - मा नि. रुग्ण व्याधी चिकित्सा देताना सात्म्य औषध, अन्न, विहार यांच्या वैद्याने अवश्य विचार करावा आणि रुग्णास ज्या ओकसात्म्य गोष्टी आहेत त्याकडेही लक्ष द्यावे ज्यामुळे त्याची चिकित्सा 'यशस्वी चिकित्सा' ठरु शकेल. धन्यवाद...! The Post by Dr. Japa Jayant Phadke Copyright @AyuPedia
- Satmya - Oksatmya By Dr. Sunil Hariram Pal
Satmya- Oksatmya Definations: सात्म्यं नामं तद यद आत्मनी उपशेते। - च. वि. १/२० (रसविमानाध्याय) सात्म्यश्चेत्यत्रसात्म्यशब्देन ओकसात्म्यमुच्यते। - चक्रपाणि ‘Satmya (Homologation) stands for such factors as are wholesome to the individual even when continuously used. ‘Satmya’ is one that does not affect the health when body becomes adapted to it. Satmya – Oksatmya difference: Satmya is the one which is conductive to one self. That which becomes a part of oneself, helpful & conductive to one self is Satmya. Satmya & Asatmya are nothing but pathya & apathya. Satmya is that which can be consumed for a long duration. Okasatmya is nothing but conduciveness developed due to continuous intake of particular substance, even though it is not good for the body. As the chronic poison suddenly, in the same way constant intake of nonconductive substance over a long period does not produce ill- effects suddenly. Satmya- Oksatmya similarity: ओकादि अभ्यासात्सात्म्य । औचित्यात् ओकसात्म्यं तदुच्यते ।। - (च.सू. ७/४९) अपथ्यमपि हि निरन्तराभ्यासद्विषमिवाशी विषस्य नोपघातकं भवतीति भावः ।। - (च.पा.सू.७/४९) Gangadhara reads Satmya as that which suits the person e.g. the use that which gives happiness. According to Hemadri, Satmya is that which is supportive, approving & agreeable to the body. ‘Satmya’ here is ‘okasatmya’ (acquired homologation) which is an accomplishment can be presented in two forms with help of its synonyms- a scientific modus operandi & a definitive outcome. The denotations oka, abhayasa & aucitya means a procedure which is always associated with a definite & pleasant result indicated by the connotations like upashaya, sukha, abadhakara, sahayyabhuta & anukula. In other words Satmya are those substances which are conductive to the body. ‘Okasatmya’ coveys own identity. The intake of food & practice of activities wholesome to the body are superlative amongst the systems worth adopting. The food stuffs which are otherwise unwholesome can become positive for the body by their regular & uninterrupted use. Examples: Roga Satmya- Milk in tumors, Ghee in udavarta, Honey in obstinate urinary disorders. Divasvapna Satmya- Day sleep in Grahani, night awakening. Desha Satmya- Curds, milk and karira in Rajasthan Alkali in Eastern India Fish in Sindh Oil and sourness to Pathans Rhizomes and roots to Malaya Thin gruel, mantha and wheat to Konkana, North India and Avanti places. The Post by Dr. Sunil Hariram Pal Copyright @AyuPedia